हे कृष्ण, मैं अपने लोगों को युद्ध के लिये तत्पर यहाँ खडा देख
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अर्जुन बोले: हे कृष्ण, मैं अपने लोगों को युद्ध के लिये तत्पर यहाँ खडा देख रहा हूँ।
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रही बात दुर्योधन को गीता का उपदेश देने का तो उसका कुछ् फायदा नहीं होता क्योकि वह तो युद्ध के लिये तत्पर था.........”
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‘‘ जब अन्याय, व्यसन तथा युद्ध के लिये तत्पर व्यक्ति से सामना हो तो कुशल पुरुष के लिये उसकी उपेक्षा करना ही एक मार्ग है।
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मंगल से बनने वाले रूचक योग में जन्मा मनुष्य दीर्घ-लंबे शरीर वाला, निर्मल कांति व रूधिर की अधिकता से बहुत बलवान, साहसिक कर्मो से सफलता पाने वाला, सदुंर भृकुटीवाला, कालेबाल, युद्ध के लिये तत्पर, मंत्र वेत्ता तथा उच्च कीर्तियुक्त होता है, रक्तमिश्रित श्यामवर्ण, बहुत शूरवीर, शत्रुओं को नष्ट करने वाला, कम्बुकंठ (शंख समान ग्रीवा), प्रधान पुरुष होता है।
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संशय अभी ही दूर नहीं हुआ था | अतः बहिर्मुखी से अंतर्मुखी होने की प्रक्रिया आरम्भ हुई | अर्थात् सूक्ष्म मनोविज्ञान | सर्वप्रथम अर्जुन को भगवान ने विराट स्वरूप के दर्शन कराए | युद्ध में मरने वाले लोगों का समूह दिखाया | ताकि अर्जुन सोचने को विवश हो जाएँ कि यह युद्ध तथा यह जनहानि अवश्यम्भावी है | अतः धर्म की रक्षा हेतु युद्ध के लिये तत्पर होना ही पड़ेगा | प्रश्न मात्र राज्य प्राप्ति का ही नहीं था | प्रश्न था कि कायरतापूर्वक अन्याय तथा अत्याचार होते देखते रहना क्या उचित है?